
विषय- मेरी अंतिम शव यात्रा पवित्र और साधारण हो
मैंने लंबा जीवन जिया है। जीवन में लगभग सभी उपलब्धियां प्राप्त की हैं। चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो, सरकारी सेवा में हो, राजनीति से संबंधित हो या पत्रकारिता से संबंधित हो। मेरे मन में कोई इच्छा नहीं फिर भी सांस आ जा रही है, इसका मैं कुछ नहीं कर सकता।
मैं चाहता हूं की मेरे शव का दाह संस्कार अग्नि मशीन द्वारा हो और जो मुट्ठी भर राख बने उसे या तो यमुना में विसर्जित कर दिया जाए या खेतों में बिखेर दिया जाए या गढ़ गंगा में डाल दिया जाए। सभी मेरे परिचित टैक्सी द्वारा मेरे शरीर को विसर्जित करने आए उन सबका खर्चा मेरी पत्नी द्वारा किया जाएगा।तत्पश्चात सभी एक जगह मिलकर भरपेट स्वादिष्ट खाना खाएं और ईश्वर का धन्यवाद करें कि उसने मुझे इतना लंबा जीवन प्रदान किया।
मेरे लिए किसी को भी दुःख करने की आवश्यकता नहीं है। मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है। अगर कोई संबंध है तो वह शरीर का है जो वह अब वह पांच तत्वों में विलीन हो चुका है। जब मनुष्य जन्म लेता है तो वह नग्न होता है और जब उसका शरीर चिता में जलाया जाता है तब भी वह नग्न होता है। समझ नहीं आता नग्न आने नग्न जाने के बावजूद भी लोग इतना पाप क्यों करते हैं? दूसरों के मुख से निवाला छीन लेते हैं। सब तरह के अपराध करके धन संपदा का ढेर लगाते हैं, जिसका उनको इसका कोई लाभ लाभ ही नहीं होता। इस धरा का, इस धरा पर, धरा ही रह जाएगा। कोई कुछ साथ नहीं जाएगा अगर कुछ जाएगा तो वह हमारे कर्मों का फल होगा। हमारे कर्मों के फल को ईश्वर भी नहीं बदल सकते। अच्छे कर्मों का फल अच्छा, बुरे कर्मों का फल बुरा।
मेरे मरने के पश्चात कोई भी धार्मिक पाखंड न किया जाए। कोई भी श्रद्धांजलि सभा य ब्रह्म भोज न हो। अगर कुछ करना है तो वंचितों को किसी न किसी तरह लाभ पहुंचा कर उनके जीवन में कुछ पल सुख के ला दें।
जब तक मैं जिंदा था तब तक मैं दूसरों के बारे में सोचता था। मरने के पश्चात मेरे हाथ में कुछ नहीं है और सब कुछ विधाता के हाथ में है। वह उन्हें वही देगा जिसके वह अधिकारी हैं। मेरे कहने से न तो उनका भाग्य बदलेगा न उनके दुःख कम होंगे न ही उनकी मुसीबतें कम होगी।
जो अच्छे लोग मेरे जीवन काल में हमारे साथ जुड़े, वह मेरे जाने के बाद भी हमारे परिवार के साथ किसी न किसी रूप में खड़े होते रहेंगे। क्योंकि ऐसे लोगों का स्वभाव ही कल्याणकारी होता है। बुरे लोग अपने स्वभाव के कारण दूसरों को सुखी नहीं देख सकते चाहे ऐसा करने से वह स्वयं पीड़ित हो रहे हों।
मेरे कपड़े और अन्य वस्तुएं, गरीब अमीर का भेद न करते हुए उन लोगों में बांटी जाएं जिनको वह फिट आते हों। इसका क्या लाभ आप किसी को गरीब समझ कर सब कुछ दे देते हैं और वह उन वस्तुओं को बाजार में बेंच देता है और एक दिन आप वही खरीद कर पहन लेंगे। मेरी कोशिश होगी कि इस बार शीत ऋतु आते ही मैं अपने स्वेटर, कोट, पेंट-कमीज और अन्य वस्तुएं श्री जे बी सिंह व वंदना सिंह, आशा को साथ लेकर उन लोगों तक वितरित करने की चेष्टा करूं जिनके ऊपर वह फिट आते हैं और उनको समझाऊं कि वस्त्र तो वस्त्र हैं वह किसी व्यक्ति विशेष के नहीं होते, वह उनके होते हैं जिनको वह फिट आते हैं। मैं इसको कदापि ठीक नहीं समझता कि सड़कों के किनारे बैठे भिखारी को बढ़िया-बढ़िया कोट, पैंट-सूट आदि वितरित कर दिया जाए जिन्हें वह पहने ही न और बाजार में बेच दें। बाद में वे उन्हें पैसों से नशे की वस्तुएं खरीदें और समाज में गंदगी फैलाए।
मैं अभी से कुछ लोगों को चिन्हित करना शुरू कर दिया है जिन्हें मेरे वस्त्र पूरी तरह से फिट आएंगे और वह मुझसे भी अधिक प्रभावशाली दिखेंगे। मैंने भी मूर्खता वस ढ़ेरों कपड़े सिलाकर रख लिए, जिन्हें एक बार भी नहीं पहना। हमने उत्तम श्रेणी के महंगे कपड़े खरीदे लेकिन हमारे साधारण जीवन के कारण उन कपड़ों को पहना ही नहीं था अब मैं जीवन के अंतिम छोर पर हूं तो सोचता हूं तो लाखों रुपए के वस्त्र किस काम को आए सिवाय अलमारियां भरने और जगह घेरने के।
कुछ लोगों से मेरे विचार मिलते हैं और वह मानते हैं बहुत सी ऐसी चीज हैं जिनमें गरीब अमीर का भेद नहीं करना चाहिए बल्कि उपयोगिता को देखना चाहिए। मेरी एक और हार्दिक इच्छा है कि छाते खरीदे जाएं और वर्षा ऋतु के शुरू में ही लोगों को बांट दिए जाएं ताकि वह भीगने से बचे और स्वस्थ रहें। मुझे नहीं मालूम कि मेरी कितनी इच्छाएं पूरी होंगी पर धार्मिक पाखंड किसी भी रूप में न किया जाए।
-एस. आर. अब्रॉल,
वरिष्ठ पत्रकार
