
नागरिकों के अधिकार और पुलिस की जवाबदेही पर क्या कहता है कानून?
नई दिल्ली। किसी भी संगीन मामले में प्रत्येक व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि वह संबंधित थाने में उसकी प्राथमिक दर्ज कराए और पुलिस की यह जवाबदेही है कि वह शिकायतकर्ता के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार के साथ उसकी प्राथमिकी दर्ज करें। वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष तंवर ने मानवाधिकार एवं पुलिस की जवाबदेही पर संवैधानिक एवं कानूनी पहलुओं को स्पष्ट करते हुए बताया कि संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित एवं संरक्षित करता है। प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट एक्ट 1993 नागरिकों को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी गंभीर मामले में सम्मानपूर्वक संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। अधिवक्ता तंवर ने बताया कि यह थाने की जिम्मेदारी बनती है कि वह शिकायतकर्ता को पूरा सम्मान दे तथा उसकी प्राथमिक भी दर्ज करें। उन्होंने पावुला येसु दासन बनाम राज्य मानवाधिकार आयोग तमिलनाडु के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि एक शिकायतकर्ता धोखाधड़ी के मामले में थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने गया, जहां पुलिस इंस्पेक्टर ने उनकी मां के साथ अमानवीय व्यवहार किया तथा प्राथमिक की दर्ज करने से मना कर दिया। राज्य मानवाधिकार आयोग ने इसको मानवाधिकार एवं व्यक्ति की गरिमा के हनन का गंभीर मामला मानते हुए संबंधित पुलिस अधिकारी को ₹2 लाख मुआवजा देने का आदेश सुनाया। इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे व्यक्ति की गरिमा एवं सम्मान का उल्लंघन मानते हुए मानव अधिकार आयोग के आदेश को बरकरार रखा।माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जीने का अधिकार,स्वतंत्रता का अधिकार,समानता का अधिकार एवं गरिमा का अधिकार किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट एक्ट 1993 नागरिकों को यह अधिकार प्रदान करती है।
