
एक देश एक संविधान तो दो विधान क्यों ? धनखड़ को तीन तीन पेंशन , कर्मचारियों को दुत्कार क्या बोले सरकारl
महामहीम माननीय पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ कभी विधायक भी थे और विधायक का चुनाव जीतते ही जन्म भर के लिए पेंशन पाने के अधिकारी बन सम्मान बन गए गए। जब पेंशन इनका अधिकार है तो उसे पुनः प्राप्त करने के लिए आवेदन भी कर दिया। साहेब विधायक से पहले सांसद भी थे वह चंद्रशेखर सरकार में संसदीय राज्य मंत्री भी रहे चुके हैं। जनता दल के चुनाव निशान से 1989 से 91 तक राजस्थान झुंझुनू से सांसद बने, साहब संसदीय पद पाते ही अनवरत 31 हज़ार की पेंशन बिना रुकावट पा रहे हैं। सन 1993 में धनकड़ साहब का कांग्रेस प्रेम जागा हाथ का पंजा थाम राजस्थान जिला अलवर के किशनगढ़ सीट से विधायक बने और आजीवन पेंशन के हकदार भी बन गए शान सम्मान से एक साथ संसद और विधायक की पेंशन का सुख निरबिघ्न भोगते रहे। 2019 में दिल में कमल खिला भाजपा का लिए समर्पण भाव बढ़ा और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बना दिए गए, तभी नियामानुसार विधायक की पेंशन बंद हो गई। 2022 में उपराष्ट्रपति के तौर पर ताजपोसी हुई, और एकाएक स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे इस्तीफा दे दिया, इस्तीफा देते ही साहेब फिर विधायक पेंशन के अधिकारी बन गए और जो सबसे जरूरी महत्वपूर्ण काम धनकड़ साहब ने सबसे पहले किया किया, वह अपनी कांग्रेस विधायक की पेंशन पुनः प्राप्त करने के लिए निवेदन। उपराष्ट्रपति के तौर पर 2 लाख महीने की पेंशन संसद के तौर पर 31 हज़ार रुपए की दूसरी पेंशन और विधायक के तौर पर 42 हज़ार की तीसरी पेंशन। धनकड एक पेंशन तीन-तीन जहाँ सरकार एक ओर सरकारी खजाने से सरकारी कर्मचारियों को दूर रख बिना पेंशन मजबूर रख रही है वही धनकड जी को तीन पेंशन का तिहरा उपहार लगभग दो लाख सत्तहतर हज़ार हर माह बिना रोक टोक तब तक देती रहेगी जब तक धरा पर धनकड है,और फिर बतौर और धर्मपत्नी जीवन संगिनी इस हक बदस्तूर अधिकारी बनी रहेंगी।
नेता वह जो मौज ले न मिले तो खोज ले यही पेंशन खोज कर धनकड़ साहब आज सुर्खियों मे है। नेता हो तो जो चाहो कर सकते हो, संविधान में कुछ जोड़ने घटाने का अधिकार नेताओं के हाथ में है उसी का नाजायज फायदा उठा कर्मचारियों का अधिकार छीन तीन तीन पेंशन डकार कर कितने महान, कितने त्याग की मूर्ति, कितने कालजयी बन जाएंगे इस पर सवालिया निशान लगा ही रहेगा। अपनी जवानी जिंदगी दे सरकार को चलाने वाले सरकारी कर्मचारियों के हाथ बुढ़ापे में खाली कर अपनी जेब में तीन-तीन, चार-चार, आठ-आठ, नौ-नौ, पेंशन से जेब भरने वाले नेतानगरी क्या कर्मचारियों का हक छीनने के लिए ही चुने जाते हैं। पेंशन पर पेंशन पीटने वाले नेताओं ने अपनी अनगिनत पेंशन का अधिकार सुरक्षित रख कर्मचारियों की पेंशन बंद कर जिस तरह उनकी जिंदगी से खिलवाड़ किया है, एक देश एक संविधान दो विधान का उदाहरण है। 146 करोड़ आबादी के इस मुल्क में महज एक करोड़ 75 लाख सरकारी कर्मचारी रजिस्टर्ड है असंगठित क्षेत्र की 85% आबादी कामगार किसान मजदूर खेतिहर पहले ही पेंशन के घेरे से बाहर खड़े हैं।
जब भाजपा सत्ता में आई तो स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने कर्मचारियों के जीवन बुढ़ापे को मोहताज बनाने का पहला काम कलम उठाकर शान से किया, उनके बुढ़ापे की लाठी को छीन पेंशन को खत्म कर दिया। अटल ने एक हाथ से कर्मचारियों की पेंशन रोक दिया तो वही दूसरे हाथ से अपनी पेंशन आखरी सांस तक बटोरने की आजादी सुरक्षित रख ली, अपने नेता बिरादरी को एक साथ अनगिनत पेंशन लेने की छूट भी बेरोक टोक जारी रखी। कर्मचारी साठ साल की उम्र में रिटायर होगा तब पेंशन मिलेगी यह लाजमी है कानूनी है किन्तु नेता विधायक सांसद कभी भी किसी उम्र में बन जाए पेंशन जारी हो जाएगी, दोबारा जाए जाए दोबारा दूसरी भी मिलने लगेगी, फिर जीत जाए तो तीन बार मिलेगी जितनी बार जीतेंगे वह उतनी पेंशन पाएंगे। आज़ाद भारत मे नेताओं को मिली पेंशन लूट की छूट सामंतवाद की कड़वी यादें दिलाता है जहां मालिक और मजदूर के अधिकार जुदा जुदा हैं। जो संविधान नेताओं को आठ आठ पेंशन डकार मौज उड़ाने की आजादी देता है वही साठ बरस सरकार का साथ देने वाले कर्मचारी से एक मात्र मिलने वाली पेंशन का हक भी जबरिया छीन लेता है। यह नियम सभी दल के नेताओं ने अपने लिए मिलजुल कर पास किया मेजे जोर जोर से पीटी, थपथपाई और मौज जिंदगी भर की अपने नाम कर ली। नेता समाज सेवक लिखते हैं सेवा का कर्म करने के लिए चुने जाते हैं या पेंशन बटोरने के लिए, नेताओं को जब वेतन भी मिलता है पेंशन भी मिलती है सुख सुविधा मोटर गाड़ी फोन नौकर चाकर भी मिलते हैं तो यह सेवक कैसे हुए? नेताओं की पेंशन बंद नहीं होती तो कम से कम इसे एक से अधिक लेने से रोक दिया जाना चाहिए और उनके नाम के आगे से सेवक जन सेवक शब्द को लिखने पर कानून प्रबंध अवश्य लगा देना चाहिए। धनकड़ जी की तीसरी पेंशन पाने की प्रबल हसरत में एक बार फिर पेंशन की जरूरत मजबूरी को जनता दरबार में जिंदा कर दिया है। तीन पेंशन भी नेताओं के लिए कम है पर कर्मचारियों को एक पेंशन देते भी सरकार के हाथ तंग है, नेता और कर्मचारियों के बीच यही जंग है। वोट हमारा पेंशन तुम्हारी कब तक? मेहनत हमारी मौज़ तुम्हारी कब तक? जवानी हमारी जिंदगानी तुम्हारी कब तक? कब तक एक संविधान दो विधान यह महान देश बर्दाश्त करता रहेगा?
राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष संसद में भी कर्मचारियों के पेंशन की बात करो,सवाल उठाओ वोट बटोरने ने के लिए यात्रा देश भर में खूब निकलते हैं, कभी कर्मचारियों के साथ कदमताल कर पेंशन के लिए भी यात्रा निकाले। कर्मचारी साथियों छोटे-छोटे संगठन समूह में बंट बंटाधार करने के बजाय एक साथ एक मंच एक नारा “पेंशन नहीं तो वोट नहीं” अब लगाना ही होगा,अब नहीं तो कब? एकता होगी तो पेंशन डकारने वाले नेता जागेंगे वरना पेंशनपान कर पेशनजीवी कुंभकर्णी नींद में मदहोश सदा सोते ही रहेंगे, क्योंकि परेशान ये नेता लोग नहीं परेशान हम कर्मचारी हैं।
ललिता अध्यापक
राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष (एनएमओपीएस)
