समाजवादी आंदोलन के 90वर्ष पर पुणे में तीन दिवसीय एक जुटता बैठक

लेखक समाजवादी आंदोलन के पुरोधा

राजकुमार जैन.

समाजवादी आंदोलन के 90 वर्ष पूरे होने के अवसर पर समाजवादी एकजुटता सम्मेलन, 19- 20 – ‌21 सितंबर 2025 पुणे ‌ महाराष्ट्र की झलकियां।
प्रोफेसर राजकुमार जैन,
मांग रहा है हिंदुस्तान
रोजी-रोटी और मकान।
धन और धरती बट के रहेगी
भूखी जनता अब ना सहेगी।कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा,नया जमाना आएगा।*
सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावे सो मे साठ।
राष्ट्रपति का बेटा हो या हो चपरासी की संतान,
सबको शिक्षा एक समान।
महारानी और मेहतरानी‍ की क्या पहचान,
एक लूट‌,‌ अय्याशी की, दूसरी है मेहनत का निशान।
समाजवाद जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद।
राष्ट्र सेवादल, एसएम जोशी‌ सोशलिस्ट फाउंडेशन‌, युसूफ मेहर अली सेंटर, समाजवादी समागम, और महाराष्ट्र गांधी स्मारक निधि ‌ की ओर से आयोजित पुणे के ‌ राष्ट्र सेवा दल के साने गुरुजी स्मारक के विशाल हाल, आंगन, गलियों में इन नारों के पीछे छुपी हुई परिवर्तन की आग धघक रही थी। समाजवादी एकता सम्मेलन के इस इजलास में तकरीबन 6 00 प्रतिनिधियों तथा पुणे के सोशलिस्टों की शिरकत, मंच पर लगे ‌ सोशलिस्ट पहचान के हल चक्र के निशान,जंगे आजादी के‌ सोशलिस्ट रहबरों महात्मा गांधी, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर राममनोहर लोहिया, युसूफ मेहर अली, कमला देवी चट्टोपाध्याय, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, के फोटो आभा बिखेर रहे थे, वहीं मुल्क के मुस्तकबिल को बदलने वाले महान हस्तियों भगत सिंह, ‌‌सुभाष चंद्र बोस, बाबा साहेब डा भीमराव अंबेडकर ‌ ‌के चित्र‌ प्रेरणा दे रहे थे। इसके अलावा ‌ हिंदुस्तानी सोशलिस्टों के शिखर पुरुष ‌ अच्युत पटवर्धन,अशोक मेहता,‌ नाना साहब गोरे,‌ मधु लिमए,‌ राजनारायण, ‌ कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर, रवि राय, किशन पटनायक, गोलप बारबोरा, गोपाल गोड्डा‌, मधु दंडवते ‌ सुरेंद्र मोहन के चित्र प्रदर्शनी ‌देखने में ‌ भीड़ लगी हुई थी।
99 साल पार कर चुके‌ भूतपूर्व सांसद, विधानसभा सदस्य पंडित रामकिशन से लेकर 18 ,-20 साल की ‌ युवा सोशलिस्ट प्रतिनिधि लड़कियां बड़े अदब और कुतूहल से बार-बार प्रदर्शनी को निहार रही थी। सम्मेलन आयोजित करने के मकसद के लिए बने आधार पत्र, जिसका सैकड़ो ‌ प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि और हाथ उठाकर जोशीले नारे के साथ समर्थन किया। उसमें लिखा गया है।
” समाजवाद मानव समाज में व्याप्त गरीबी, अन्याय, शोषण, विषमता और अत्याचारों को दूर करने का सिद्धांत है। यह स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समता, संपन्नता, बंधुत्व और सहयोग के जरिए सुखमय जीवन की स्थापना का दर्शन है। इसने विभिन्न प्रकार के अन्यायों, शोषण, गैर बराबरी और अत्याचारों का रचना और संघर्ष की दोहरी रणनीति के जरिए निर्मूलन का रास्ता दिखाया है। इसके जरिए दुनिया के अधिकांश देशों की प्रगतिशील जनता ने चेतना निर्माण, रचनात्मक कार्य और सत्याग्रह के ‌ समन्वय से समतामूलक आदर्शों ,संस्थाओं और तरीकों का लगातार संवर्धन किया है। निजी और सामुदायिक जीवन में न्याय, नैतिकता और मानवीयता को बढ़ावा देना भारतीय समाजवादियों का मकसद है। इसलिए हर समाजवादी साध्य और साधन को एक ही सच का दो पहलू मानता है।देश समाज मे चतुर्मुखी स्वराज, राजनीति, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक की स्थापना भारतीय समाजवाद की बुनियाद है। बिना पूर्ण स्वराज के समाजवादी समाज की दिशा में नहीं बढ़ा जा सकता है। मानवमात्र के प्रति सम्मान, वसुदेव कुटुंबकम के आदर्श में विश्वास और कथनी और करनी की एकता समाजवादी आचरण की कसौटी है। समाजवादी विचारधारा ‌ पूंजीवाद और साम्राज्यवाद में निहित मुनाफाखोरी, स्वार्थ, हिंसा अनैतिकता ,श्रमजीवी वर्गों और शक्तिहीन समुदायों और क्षेत्रों के शोषण और प्राकृतिक संसाधनों के विनाशकारी दोहन की विरोधी है।
हम जानते हैं कि पूंजीवादी शक्तियों ने समाज और राज सत्ता संचालन के लिए लोकतांत्रिक समाजवादी सूत्रों में से साधारण नागरिकों के लिए कुछ कल्याणकारी उपाय को अपनाकर अपना आकर्षक बनाया है। लेकिन इसमें निहित विषमता की अनिवार्यता तथा इसकी टेक्नोलॉजी द्वारा बेरोजगारी का विस्तार और प्रकृति का लगातार विनाश हुआ है। पूंजीवादी व्यवस्था में मानव समाज में बंधुत्व स्थापित करने ‌ और समाज और प्रकृति के टिकाऊ सहअस्तित्व की दृष्टि से खतरनाक दोष है।
हर समाजवादी रोटी और आजादी यानी पूर्ण रोजगार, नागरिक अधिकार दोनों को एक जैसा जरूरी मानता है।
1991- 92 से चल रहे बेलगाम निजीकरण, भोगवाद, ‌ सांस्कृतिक कट्टरता, पर्यावरण प्रदूषण और बाजारवादके जरिए सभी नव स्वाधीन देशों में गंभीर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है।
21वीं शताब्दी का यह तकाजा है कि सभी स्त्री पुरुषों की बुनियादी जरूरतों के अभाव को योजनाबद्ध तरीके से दूर करते हुए समाज में सभी के लिए सम्मानपूर्ण जीवन को संभव बनाया जाए। यह बिना अन्याय मुक्त समाज और प्रकृति संवर्धक विश्व व्यवस्था के असंभव है। जबकि पूंजीवाद साम्राज्यवाद ने लोभ, शोषण, विषमता, हिंसा और वर्चस्व पर आधारित समाज व्यवस्था को प्रबल बनाया है। इसलिए दुनिया को विशेषकर किसानों, मजदूरों, युवजनो, मध्यवर्ग ‌ और स्त्रियों को पूंजीवाद से बेहतर व्यवस्था की जरूरत है। जिससे सभी प्रकार की गरीबी से मानव को मुक्ति मिले। एक समतामूलक, न्यायपूर्ण और आतंकमुक्त दुनिया बने। इंसान और पृथ्वी दोनों की स्थाई सुरक्षा संभव हो।
भारत के लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण की जरूरत के लिए समाजवादियों ने डॉक्टर लोहिया के विचार अनुरूप सत्ता के विकेंद्रीकरण और ग्राम स्वराज के लिए चौखंबा राज का रास्ता सुझाया। देश के किसानों की दशा सुधारने के लिए भूमि सुधार, सिंचाई सुविधा और संतुलित दामनिति के लिए कई बार सिविल नाफरमानी की। राष्ट्रीय स्वावलंबन के लिए जरूरी उद्योग विस्तार में सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूती की जरूरत और मुट्ठीभर उद्योगपति घरानों के एकाधिकार के खतरे के प्रति जनमत निर्माण में योगदान किया। दाम बांधो और खर्च पर सीमा की जरूरत पर बल दिया। औरत और मर्द की समानता को आदर्श मानने वाले समाजवादियों ने सभी औरतों को वंचित भारत का हिस्सा मानते हुए विशेष अवसर का अधिकारी बताया। ‌ समाजवादियों ने राजनीति के सांप्रदायिककरण को देश की एकता और लोकतंत्र के लिए खतरनाक मानकर इसके विपरीत समाज में सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी जमातों के साथ न्याय के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों का समर्थन किया। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भारत के समाजवादियों ने देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के आवाहन पर भारत छोड़ो आंदोलन 1942 से 46 से लेकर राजनीतिक आजादी के बाद 1947 – 67 के दौरान आर्थिक ,सामाजिक, मानसिक स्वराज के लिए लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में लोकतंत्र बचाओ आंदोलन 75- 77 में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। फिर 1990 के दशक से आज तक पूंजीवादी भूमंडलीकरण के खिलाफ किसानों- मजदूरों- दलितों- आदिवासियों- महिलाओं- युवजनो की पुकार पर आजादी बचाओ – देश बनाओ के लिए हर जन – हस्तक्षेप में बार-बार अगली कतार के सेनानी रहे। इसलिए आज समाजवादियों के लिए गांधी- लोहिया- जयप्रकाश के अनुयायी का विशेषण इस्तेमाल किया जाता है। हमने यह दिखाया है कि भारत में समाजवाद के लिए गांधी के ग्राम स्वराज, लोहिया की सप्त क्रांति जो कि जयप्रकाश की संपूर्ण क्रांति थी के लिए प्रयास ही सही रास्ता रहा है। डॉ राममनोहर लोहिया द्वारा 1961 में एथेंस में संपन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत ‘सप्तक्रांति’ का कार्यक्रम विश्व समाजवादी चिंतन में भारतीय समाजवादियों का अनूठा योगदान माना जाता है।
लोहिया के अनुसार 20वीं सदी की दुनिया में सात क्रांतियां एक साथ चल रही है:1, नर -नारी की समानता के लिए, 2,चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आध्यात्मिक व आर्थिक और दिमागी असमानता के विरुद्ध,
3, संस्कारगत और जन्मजात जातिप्रथा के खिलाफ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए, 4,परदेसी गुलामी के खिलाफ और लोकतंत्र और विश्व सरकार के लिए, 5, निजी पूंजी की विषमताओं के खिलाफ और आर्थिक और आध्यात्मिक समानता के लिए,
6, निजी जीवन में राजशक्ति के अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और 7, नि:शस्त्रीकरण और सत्याग्रह के लिए।
हम समाजवादी मानते हैं कि अपने देश में में भी इसको एक साथ चलाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे आने वाले दिनों में ऐसा संयोग संभव है कि इंसान सब नाइंसाफियो के खिलाफ लड़ता -जूझता ऐसा समाज और दुनिया बना पाएगा जिसमें आंतरिक शांति और भौतिक संतोष हो।
देश के समक्ष उपस्थित नई चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए आज भी समाजवादियों को पहले की तरह ही ‌ वोट, जेल, फावड़ा ‌ अर्थात रचना, चुनाव और सत्याग्रह के जरिए परिवर्तनकारी जनशक्ति के निर्माण के लिए आम आदमी -औरत के साथ एकजुट होना चाहिए।
वैकल्पिक समाजवादी रास्ता,
‌ देश की दशा के प्रति चिंतित‌ समाजवादियों ने अपने 84 में स्थापना दिवस पर 17 मई 2018 को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय समागम में एक सोशलिस्ट मेनिफेस्टो का प्रारूप देश के विचारार्थ प्रस्तुत किया है। यह दस्तावेज कारपोरेट पूंजीवाद के द्वारा 1992 से भारत में अपनाए गए विकास मार्ग को दोषपूर्ण मानता है। क्योंकि इस विकास का मतलब पश्चिम के विशाल बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए स्वतंत्रता है। यह 1, हमारी अर्थव्यवस्था को लूटने, 2, पर्यावरण को प्रदूषित करने, 3, प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन और
4, हमारी संस्कृति में हिंसा के बीज बोने में जुटे हुए हैं।
विषयवार 8 सत्रों में बांटे गए‌ सम्मेलन में तकरीबन सो साथियों ने अपनी राय का इजहार किया। सुबह 9:00 बजे से रात्रि के 8:00 तक मुसलसल चले इस इजलास में ‌ जहां हाल खचाखच भरा‌ रहता था वहीं ‌ सम्मेलन स्थल के पूरे परिसर में गहमागहमी,‌ चहलकदमी,‌ बतियाने ,आने जाने का ‌ खुशनुमा माहौल आखिर तक बना रहा।
जारी है,–
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