बाबा साहेब नारी शक्ति की प्रेरणा थे।

नारी के लिए नारायण है बाबा साहब अंबेडकर-
दहेज की आग मे जलती, बहु विवाह प्रथा के जाल मे छटपटाती, पिता पति की संपत्ति मे समान अधिकार लिए तरसती, प्रसव वेदना में काम करने को मजबूर,मतदान से दूर, शिक्षा के लिए अछूत घोषित नारी के लिए नारायण बन सामने आये भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर।
शिक्षा को शेरनी का दूध कहने वाले संविधान रचयिता ने शिक्षालय के कपाट खोल नारी की बराबरी का जो अधिकार दिया उसके रौशनी से सभी अधिकार साफ और सम्भव दिखाई देने लगे।शिक्षित नारी जुल्म जलालत नफरत हकारत बर्दाश्त नहीं करेगी, कलम का हथियार नारी के नाम कर बाबा साहब ने नई क्रांति का बिगुल फूंका। पिता पति की संपत्ति में नारी का समान हक बाबा साहब की देन है, वोट की ताकत से चोट कर सत्ता को ललकारने की हिम्मत भारत रत्न भीमराव की वजह से ही नारी के हक में जाता है, तलाक सिर्फ पूरुष ही दे सकते हैं क्यों? नारी को भी तलाक देने का हक़ दे नाजायज प्रताड़ना से आजादी का कानूनी हक बाबा साहब की सोच का परिणाम है। स्वैच्छिक जीवनसाथी जाति बिरादरी से ऊपर उठ चुन जीवन खुशियों से जीने का सम्मान नारी जीवन का अधिकार बाबा साहब की कलम से ही निकला है,मैटरनिटी लीव (प्रसव अवकाश) तो बाबासाहेब ने अमेरिका से पहले हमारे हिस्से कर दुनिया को बता दिया भारत की नारी किसी से कही भी पीछे नहीं है।
समानता सम्पति सुरक्षा समरसता के साथ मताधिकार करने और चुनाव लड़ चुनौती पेश करने की ताकत जो हमें मिली है वह बाबा साहेब के संघर्ष का सुखद फल है। आज बाबा साहेब की राह पर बाबा साहेब के दिखाए राह पर बाबा साहेब की बेटी बढ़ रही है, यह डगर आसान नहीं है जानती हूं, पर इतनी भी कठिन नहीं है कि मंज़िल तक पहुंचा भी न जा सके। बाबा साहब की तस्वीर घरों में दीवारों पर टांगने वाले राह की दीवार न बने साथ चले, साथ खड़े हो हौसला बढ़ाये तो दिल्ली ने आधी सदी में जो नहीं हो सका वो सुनहरा इतिहास बनता देखेगी, 50 साल में जो साजिशन नहीं होने दिया गया उस जीएसटी के बड़े दफ्तर में पहली बार कोई नारी सम्मान और अधिकार से प्रवेश कर सकेगी। यूनियन के दफ़्तर मे कुर्सी पर बैठ नारी कल्याण की नीति बन सकेगी,महिलाओं की मददगार बन सकेगी।
बाबा साहेब का सपना शक्तिशाली नारी, हमारी जिम्मेदारी तभी पूरा होगा जब बाबा साहब को मानने, जानने, समझने, पूजने वाले नारी के बढ़ते कदमों की जंजीर नहीं ताकत बनेंगे! Mai बाबा साहब की दिखाई राह पर चल रही हूं रुकोगे या दोगे साथ सोचना आपको है। कैलेंडर टांग बढ़ते कदमो मे टांग अड़ा स्वयंभू नेता बने रहेंगे या बाबा साहेब की सीख पर कुर्बान होने आगे बढ़ रही बेटी के साथ खडे होने का साहास जुटाएंगे। फैसला आपका है आपका निर्णय ही आपको दागदार या ईमानदार बनाएगा। जो भी करेंगे आपके विवेक पर निर्भर करता है मैं तो बस बाबा साहेब की बेटी बन आगे बढ़ रही हूं, चल पड़ी हूं, चलती ही रहूंगी, रोकने टोकने वालों की परवाह किए बगैर।
मैं पछती हूं बहनों आप से अब नहीं तो कब? और हम नहीं तो कौन?50 साल बाद आया है नारी सम्मान का यह अवसर नई स्वैग विमान का यह मौका, नारी जीत की यह दास्तान आपके साथ सहयोग के बिना संभव ही नहीं, बाबा साहब ने जो राह दिखाई है, जो अवसर दिया है जिस हक़ अधिकार को संविधान में लिखकर अमिट अकाट्य बनाया है पर चलना बढ़ाना साथ देना तो हम सबकी ही जिम्मेदारी है। जीएसटी के दफ्तर मे आज तक जिन लोगो को आने नहीं दिया, अवसर ही नहीं दिया वह तो दोषी हैं ही किंतु आए हुए इस अवसर पर जो मुंह फेर कर खड़े हो जाएंगे वह अपराधी साबित होंगे वक्त की अदालत में, जब समय लौट कर पूछेगा तो धिक्कारता हुआ सवाल करेगा एक ललित अध्यापक 50 साल बाद नारी सम्मान का मौका बन सामने आई थी। जगाने,बताने समझने बाबा साहेब के दिए अधिकार को मांगने तो आप बाबा के बेटे बेटियां बाबा की राह पर बाबा की बेटी को जीतने के लिए जोर लगा रहे थे, या उसे सफलता की राह से हटा हार की राह पर धकेलने की जोर आजमाइश का षड्यंत्र रच रहे थे। एक बार सोचना चेहरों पर चेहरे चिपकाए कही जाने अनजाने बाबा साहब को ही तो धोखा नहीं दे रहे थे, कल पछताना नहीं पड़े इसलिए आइये आज से मिलकर बाबा साहब के सपनों को साकार करें। पूरी शिद्द्त ताकत से साथ दे और बता दे दिल्ली को अब नारी की बारी है। मुझे कोई भी हार विचलित नहीं कर सकती किसी भी त्याग को तत्पर अधिकारी का पद छोड़ अधिकार के पथ पर संघर्ष को अग्रसर हो नारी शक्ति शौर्य साहस अधिकार की याद दिलाने आई हूँ। मैं बाबा साहब के बेटों तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य याद दिलाती हूं,जीतेगी नारी तो जीतेगा देश। दिल्ली देख रही है दिल्ली बोलेगी आधी शदी बाद भी नारी नहीं जीत पाई या फिर से मिलकर हार दी गई उनहीं ताकतवर हाथों से जिसने सदियों से उसे कैद रखा, आगे नहीं बढ़ने दिया मौका नहीं दिया,बराबरी का स्थान नहीं दिया। पचास साल में जीएसटी की बड़े दफ्तर में बड़ी-बड़ी कुर्सियां सजी, बड़ी-बड़ी कुर्सियां लगाई गई, बड़े-बड़े समारोह हुए इन बड़ी-बड़ी कुर्सियों, इन बड़े-बड़े समारोह, इन बड़े-बड़े अधिकारियों के बीच आधी आबादी के लिए एक कुर्सी भी नहीं सज पाई क्यों? यह सवाल देश की आजादी के बरसों बाद भी ज्यो का त्यों मुँह चिढ़ाता खड़ा है, यह सवाल हमें कचोटता है, झकझोरता है की देश के दिल दिल्ली भारत की राजधानी मे नारी आज भी अपने अधिकारों अपने हक से दूर बहुत दूर बाट निहार रही है, आज भी कितनी दूर है? अध्यापक भाइयों बहनों अध्यापक ही कर्म, अध्यापक ही धर्म, ध्यापक ही नाम पहचान बना ललिता अध्यापक अध्यापको के हित को समर्पित आपके सामने इस भरोसे के साथ अडिग ख़डी है की अध्यापक मिलकर अध्यापक की जीत की राह बनाएंगे।
ललिता अध्यापक

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