टेरिफ़ वार यानि ट्रपं ने स्वीकारी हार :डा. अतुल कुमार।


असहाय रेड इंडियन आदिवासियों के हत्यारे क्रूर गोरों के वंशज अमेरिकनों के काले मसूबें जानते हुए भी कतिपय हिन्दुस्तानी उनका गुणगान करते हैं। शत्रु पाकिस्तान को सिर पर चढ़ा कर लगातार मदद कर रहे अमेरिका हिन्द के विकास का विरोधी है। इन गोरों का लक्ष्य हिन्दुस्तान के हर नगर में बदहाली और सीमा पर खतरों का जमावड़ा बनाये रखना है। एक नीच सोची हुई योजना में यहां हिन्द हिन्दी हिन्दु और हिन्दुस्तानी विरोधी कुकर्म को सक्रिय करते रहता है।
सिन्दुर में पिटते हुए पाकिस्तान को बचाने के लिए अमेरिकी लाबी तुरंत सक्रिय हो उठी। इसके बाद ही तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और पेट्रोकेमिकल्स के व्यापार के लिए कुछ भारतीय कंपनियों और नागरिकों पर अपने यहां के लिए प्रतिबंध लगाए हैं। दो कौड़ी के मक्कारों ने धंधे में बेइमानी कितनी की है वो तो सभी निर्यातक जानते है। अमेरिकी कमीन कभी कीड़े निकाल की जीरा की आवक रोकते है कभी खाद की वजह से आम। ताकि किसी आयातक को नहीं मिले दाम। दवा हो या कपड़े का आयात चालबाजी ऐसी है कि भुगतान नहीं हो।
दूसरी तरफ भिखारी पाकिस्तान को हथियारों की जबरन मदद केवल भारत में अंशाति फैलाने के लिए है। अरब, यूरोप और अफ्रिका के दर्जनों पिछलग्गू देशों की कतार में भारत को लाने के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान के पास गोटियां बिछा रहा है।
भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद व्यापार का विषय और इससे अमेरिका के पेट में गैस बनने लगी। सवा अरब से अधिक जनसंख्या के भारत में व्यवसायिक और औद्यौगिक के तेज विकास से ऊर्जा की ज़रूरतें बहुत ज्यादा हैं। इसमें तेल, कोयला, गैस और अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए ज़रूरी चीज़ें ख़रीदने की क्षमता शामिल है, जैसा कि हर देश करता है।
भेदभावपूर्ण कार्रवाइयाँ अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय संप्रभुता के सिद्धांतों का उल्लंघन और आर्थिक साम्राज्यवाद का प्रतिनिधित्व करती हैं। वर्तमान में रूसी तेल सस्ता और रुपये के भुगतान पर उपलब्ध है। इसके मद ही वाशिंगटन को मास्को के साथ भारत के व्यापार पर चिढ़ है और खीझ में आ कर नये आयात कर लगा रहा है। इसी पर देश के कुछ लालची खुदगर्ज धंधेबाज अमीर निजी हित के लिए अमेरिका के साथ धंधे के लिए मरे जा रहे हैं। यह निश्चित रूप से राष्ट्रहित संबंधों की कीमत पर किया जा रहा काम है। भारतीय अवाम को ऐसे अमीरों से स्वाभाविक चिढ़ है। निश्चित ही यह एक शर्मनाक समाचार है कि भारत की कुछ कंपनी केवल टैरिफ के डर से ईरानी और रूस के साथ के सौदे को नकार रही है।
व्यापारिक मापदण्डों पर जो उचित हो, देश हित हो, वही भारतीय उद्योगपतियों को करना चाहिए। सरकार और समाज इस पर संज्ञान ले और ट्रम्प के टैरिफ ड्रामे में अमेरिकों के दर्द व हार को महसूस करे। रूस ही नहीं विश्व में किसी भी अन्य राष्ट्र के साथ आर्थिक और रक्षा संबंधों पर निर्णय में अमेरिका किसी धमकी से इच्छा थोपने का विचार ना रखे। हमारे दुश्मनों को पालने वाले शराफत का मुखैटा पहने एक शैतान देश के टैरिफ़ हथियार के हमले के खिलाफ हमें एक जुट हो कर लड़ना होगा।

रिपोर्ट -बंसी लाल, openvoice

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